नई पुस्तकें >> छत्तीसगढ़ का लोक-पुराण : मनोमय गाँवों का बहुरूप छत्तीसगढ़ का लोक-पुराण : मनोमय गाँवों का बहुरूपराहुल कुमार सिंह
|
0 5 पाठक हैं |
"छत्तीसगढ़ की भाषा, बोली और नामों की इस खोज में लिपटा एक लंबी खोज।"
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक द्वारा छत्तीसगढ़ की भाषा के इतिहास, परंपरा और वहाँ के गाँवों के नामकरण के पीछे का क्या इतिहास रहा है, के बारे में चर्चा की गई है। उक्त पांडुलिपि विषयवस्तु की दृष्टि से छत्तीसगढ़ की भाषा, बोली और उसमें आए परिवर्तन पर केंद्रित एक लघु अनुसंधान है।
‘‘यह किताब लगता है लंबे समय की, दौड़-धूप की खोज है। कौतुक शिल्प हल्के से कहा गया भारी कथन है। मेरा जानने का चश्मा, देखने के चश्में की तरह बदलता रहता है, छत्तीसगढ़ को मैंने इस तरह भी देखा, मेरा चश्मा है यह किताब। नामों की इस खोज खबर में जगह-जगह इकट्ठे नामों को मैंने सूची की तरह नहीं, सोचता हुआ एक-एक नामों को कर पढ़ा।’’
– विनोद कुमार शुक्ल
अनुक्रम
आमुख
भाग -1
- गाँव दुलारू
- अक्षर छत्तीसगढ़
- छत्तीसगढ़ी
भाग – 2
- स्थान-नाम
- पोंड़ी
- बलौदा और डीह
- गेदुर और अचानकमार
भाग – 3
- सोन सपूत
- तालाब
- टाँगीनाथ
- देवारी मंत्र
- देवता-धामी
- ग्राम-देवता
भाग – 4
- मौन रतनपुर
- राजधानी रतनपुर
- लहुरी काशी रतनपुर
- मल्हार
- गढ़ धनोरा
- गिरोद
- कुनकुरी गिरजाघर
- बिलासा
भाग – 5
- त्रिमूर्ति से त्रिपुरी-1939
- अखबर खान
- रेरा चिरइ
- गिधवा में बलही
भाग-6
- बस्तरिया रामकथा
- मितान-मितानिन
- छेरछेरा
- छत्तीसगढ़ी दानलीला
|